ऐसी गलती ना कर मुझको ठुकराने की
- जो मजा मुझमे है ,इस जहां में नहीं
मैं कलाकार ये संगमरमर वदन
बस मैं छूं लूँ इसे तो संवर जायेगी
मुझको दिलबर बनाने की सोचो तो बस
बात तेरे गले भी उतर जाएगी
तेरे लव रस भरे लबलबाते हुए
बूँद दो -चार मुझपे टपक जाने दो
तेरे गालों की लाली बड़ी लाल है
क्या कहूँ अब कहाँ तक बुरा हाल है
खोले रखना जरा इश्क की खिरकियाँ
वरना मौके पे फिर देर हो जाएगी ………
(कवि मनीष सोलंकी )